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Friday, January 28, 2011

‘अमन का पैग़ाम‘ लीजिए और ‘अमन का पैग़ाम‘ दीजिए, करने का सबसे ज़्यादा ज़रूरी काम आज यही है


दुनिया आज दुख का घर है और इंसान का घर भी यही है। दुनिया को दुख से भरने वाला भी कोई और नहीं है बल्कि खुद इंसान ही है। हर इंसान का की आदत और उसकी सोच दूसरों से थोड़ी बहुत अलग ज़रूर है। इंसान की यह एक ऐसी ख़ासियत है जिसकी वजह से दुनिया में तरक्क़ी के काम हुए और दुनिया में जितनी बर्बादियां फैलीं, वे सब भी इसी वजह से फैलीं। तरक्क़ी तब हुई जब सब अलग होने के बावजूद मिलकर हंसे-बोले और मिलकर काम किया और बर्बादियां तब फैलीं जब अलग होने को अपनी पहचान बना लिया गया, जब साथ हंसने-बोलने को भुला दिया गया। तब वे आपस में टकराये, कभी अपनी पहचान की हिफ़ाज़त के नाम पर और कभी अपनी सोच की बड़ाई के नाम पर। यह टकराव अब भी जारी है। टकराव की सोच ही आज इंसान को दुख दे रही है।
यह टकराव अभी और चलेगा, यह जल्दी ख़त्म होने वाला नहीं है। इसी टकराव के बीच इंसान को दुख पर फ़तह पानी है, यही चुनौती आज इंसान के सामने है।
दुनिया में आज दुख है। इंसान सोचता है कि यह दुख जाए तो मैं हंसूं। वह दुख जाता नहीं है कि एक दो नए दुख और जाते हैं उसकी ज़िंदगी में। वह सोचता है कि ये दुख जाएं तो मैं खुशी मनाऊं। जबकि करना इससे उल्टा है। हमें पहले हंसना होगा, तब दुख जाएगा। हमें खुशियों को महसूस पहले करना होगा, दुख का अहसास उसके बाद जाएगा।
ऐगनस रेपलियर ने कहा है किहम जिसके साथ हंस नहीं सकते, उसके साथ प्यार भी नहीं कर सकते।
ठीक ही कहा है रेपलियर ने लेकिन रेपलियर ने यह नहीं बताया कि जहां प्यार हो, वहां प्यार कैसे पैदा किया जाए ?
वह आपको मैं बताऊंगा।
आप जिन लोगों से प्यार नहीं करते, उनके साथ हंसिए-बोलिए, प्यार पैदा हो जाएगा।
यह एक अब्दी उसूल है जो सदा से चला रहा है। मैंने इसे सिर्फ़ दरयाफ़्त किया है, इसे बनाया नहीं है। आप और हम सदा से इस उसूल से काम लेते रहे हैं लेकिन जानते नहीं हैं।
रेपलियर के देश में लड़के-लड़कियां पहले साथ घूम-फिर कर देखते हैं कि क्या हम साथ हंस सकते हैं ?
अगर वे साथ में हंस लेते हैं तो फिर साथ में रहकर देखकर देखते हैं कि क्या हम साथ रह सकते हैं ?
फिर वे बच्चे पैदा करके देखते हैं कि क्या वे दोनों मिलकर बच्चों की ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं ?
साथ मिलकर हंस लिए तो ठीक, वर्ना अलग। साथ रह लिए तो ठीक वर्ना अलग। साथ मिलकर बच्चे पाल लिए तो ठीक वर्ना अलग।
ऐसा क्यों करते हैं वे ?
वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनका परिवार और समाज सब कुछ बिखर चुका है। बेशक शादी-ब्याह में जुड़ते दो लोग हैं लेकिन जोड़ता पूरा समाज है जो कि बाद में भी जोड़े रखता है।
वे लोग यक़ीन खोए हुए लोग हैं।
हमारे यहां यक़ीन और विश्वास की अथाह दौलत है। हमारे यहां पहले ब्याह करते हैं लड़के लड़की का आपस में, फिर उन्हें साथ बैठने की इजाज़त मिलती है और फिर बुज़ुर्ग लोग कुछ ऐसी रस्में अंजाम देते हैं जो एक खेल की तरह लगती हैं। कभी किसी बर्तन में पानी भरकर दूल्हा-दुल्हन से कहा जाता है कि दोनों एक साथ पानी में हाथ डालकर अंगूठी ढूंढें और कभी ऐसा ही कोई दूसरा खेल कराया जाता है।
यह सब क्या है ?
क्या यह सब महज़ एक खेल है ?
इन्हें खेल समझने वाले इसके अस्ल राज़ से नावाक़िफ़ हैं। इसका राज़ यह है कि ब्याह से पहले तक लड़के और लड़की के लिए किसी ग़ैर को छूने की मनाही थी और यह मनाही उनके तहतुश्शऊर तक में, सबकांशिएस तक में बैठी हुई है। ऐसे में अगर एकदम दोनों की मुठभेड़ करा दी जाए तो शरीर की प्यास तो चाहे दोनों को जुड़ने पर मजबूर कर दे लेकिन उनके मन नहीं जुड़ पाएंगे। इसीलिए उनके मन से पहले धीरे-धीरे अजनबियत दूर की जाती है, उन्हें एक दूसरे के वजूद का आदी बनाया जाता है। उन्हें साथ हंसाया जाता है। साथ हंसेंगे तो प्यार खुद पैदा हो जाएगा।
औरत हो या मर्द, हंसते हुए दोनों ही बहुत प्यारे लगते हैं, इंसान की यह ख़ासियत है कि जो चीज़ उसकी नज़र को भा जाती है, उसका दिल उसके पीछे भागता है और जहां एक बार दिल किसी के पीछे लग गया तो समझो कि वह इंसान बस उसका हो चुका।
शादी-ब्याह की रस्मों के ज़रिए दोनों का दिल बहलाया भी जाता है और दोनों हंसाकर एक दूसरे के लिए उनमें प्यार भी पैदा किया जाता है। अगर वे इस राज़ को जान लेते तो वे सदा हंसते रहते, शादी के बाद भी, लेकिन उन्होंने तो उसे बस एक रस्म और एक खेल समझा। जिसे सिर्फ़ ब्याह के मौक़े पर खेला जाता है जबकि वह एक शुरूआत थी, एक सबक़ था, जिसे उन्हें दोहराते रहना था, जीवन भर।
आदमी को अपना बच्चा और पराई औरत दोनों ही अच्छे लगते हैंयह एक कहावत है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आखि़र ये दोनों क्यों अच्छे लगते हैं ?
क्योंकि दोनों ही हंसते हैं।
अपनी बीवी इसीलिए अच्छी नहीं लगती। जब भी आप उसके पास जाएंगे, बस वह आपको काम ही बताएगी। कभी बच्चों की फ़ीस जमा कराने का तो कभी कोई मशीन ठीक कराने का। काम बहुत बताएगी लेकिन सारे काम करने की ताक़त जहां से मिलती है, बस वही काम नहीं करेगी, साथ बैठकर, पास बैठकर हंसेगी नहीं। हंसेगी नहीं तो वह अच्छी भी नहीं लगेगी।
आदमी हीरोईनों के फ़ोटो पर्स में रखता है, दीवार पर लगाता है, कम्प्यूटर और मोबाईल में डाउनलोड करता है। उनके पीछे दीवाना बना हुआ है। वहां क्या है ?
वहां भी एक मीठी सी मदभरी मुस्कान ही तो है जो कि हक़ीक़त नहीं है बल्कि सिर्फ़ एक छलावा है।
लड़कियां क्रीम-पाउडर में अपना पैसा खपा रही हैं, बेकार में ही। उनकी कशिश को बढ़ाने वाली चीज़ उनका रंग नहीं है बल्कि उनका हंसना और मुस्कुराना है।
एक मुस्कुराहट किसी भी लड़के को दीवाना बना सकती है। यह एक साबितशुदा हक़ीक़त है।
हमारी तहज़ीब पुरानी है। हमें अपनी तहज़ीब पर यक़ीन है। हमें पता है कि ब्याह को टिकाऊ कैसे बनाया जाता है ?
कैसे किसी के दिल में प्यार का बीज बोया जाता है ?
हम जानते हैं इसीलिए हमारे देश के ब्याह अक्सर टिकाऊ होते हैं।
आप चाहते हैं कि आपकी ज़िंदगी से दुख चला जाए तो उसके जाने का इंतज़ार मत कीजिए, बस हंसना सीख लीजिए। किसी इंसान से दुख पहुंच रहा है आपको तो उससे शिकायत मत कीजिए, बस उसके साथ बैठकर बातें कीजिए, उसके साथ हंसिए। उसका नज़रिया आपके बारे में बदल जाएगा, वह आपको दुख पहुंचाने की आदत छोड़ देगा।
अगर कोई चीज़ आपके पास हो लेकिन आप उसे कभी इस्तेमाल नहीं करते, उसपर ध्यान नहीं देते, उसका नाम तक आप कभी नहीं लेते तो फिर आपके लिए उसका होना और होना बराबर है।
आप इसी तरीक़े से अपने दुख को होने के बावजूद होनेमें बदल सकते हैं। आप कभी किसी की हमदर्दी पाने के लिए उसका इस्तेमाल मत कीजिए, महफ़िल में कोई उसकी चर्चा छेड़े तो उसकी बात काट दीजिए, खुद भी उस पर ध्यान मत दीजिए। उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दीजिए। उसका होना आपके लिए होने के बराबर हो जाएगा और आप ऐसा कर सकते हैं फ़ौरन।
याद रखिए, जिस चीज़ को आप महसूस नहीं करते वह आपके लिए है भी नहीं।
सुख-दुख एक अहसास का नाम है। अहसास की वजह बाहर हो सकती है लेकिन अहसास अंदर ही होता है। दुश्मन आपके लिए दुख की वजह तो पैदा कर सकता है लेकिन अगर आप उसे महसूस करने के लिए तैयार नहीं हैं तो वह आपको हरगिज़ दुखी नहीं कर सकता। दुख को जीतने के लिए आपको अपने अहसास पर क़ाबू पाना सीखना होगा।
यह बिल्कुल पहला सबक़ है। इससे आगे वे सबक़ भी हैं जब इंसान के लिए हर दुख लज़्ज़त का ज़रिया बन जाता है। जो भी दुख उसकी ज़िंदगी में आता है, लज़्ज़्त साथ लाता है।
नहीं, वह आपको अभी नहीं बताया जाएगा। पहले तो आप बस इतना कर लीजिए जितना कि आपसे कहा जा चुका है।
आप दुख से निकल पाएंगे तभी किसी और को भी दुख से निकाल पाएंगे। जितना ज़्यादा आप दुख के अहसास से आज़ाद होते चले जाएंगे, आपकी ज़िंदगी में उतना ही ज़्यादा अमन आता चला जाएगा और तब आपने जिस तरीक़े से खुद अमन पाया है, वही तरीक़ा आप दुनिया को बताएंगे, तब आपकाअमन का पैग़ामएक ऐसी हक़ीक़त होगा, जिसे अपनाने के लिए हरेक तैयार होगा।
अमन यहां नक़द है, बस सच्चा तलबगार चाहिए।
कौन चाहता है अमन , सामने आए ?
आपकी चाहत पूरा होने का वक्त गया है।
जो तरीक़ा एक इंसान के लिए फ़ायदेमंद है, वही तरीक़ा पूरी क़ौम के लिए भी कारगर है।
आप बाज़ारों में देखिए, अलग अलग बिरादरियों के लोग कैसे मिलजुल कर कारोबार करते हैं।
उनका पास बैठना, साथ खड़े होना और मिलकर काम करना ही उनके अंदर की नफ़रतों को कमज़ोर करता रहता है, उनके अंदर मुहब्बत के फूल खिलाता है।
फ़ितरत को नफ़रत मंज़ूर ही नहीं है। नफ़रत को वह खुद मिटाती रहती है और नफ़रत करने वालों को भी। साथ रहना और प्यार करना इंसान की फ़ितरत है। इंसान साथ चाहता है, खुशी और प्यार चाहता है, अमन चाहता है और ये सभी बातें एक दूसरे में इस तरह पैवस्त हैं कि एक आएगी तो दूसरी भी चली आएगी।

5 comments:

Minakshi Pant said...

आज दूसरी बार मै आपके ब्लॉग मै आई और आपका लेख पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई और मै आपके सभी तथ्यों से सहमत हु आपने जो भी लिखा है बिल्कुल सही लिखा अगर वास्तव मै इन्सान अमन चाहता है तो उसे उसकी शुरुवात दुसरे को बदलने से पहले खुदको बदल कर ही करना होगा अगर हम किसी को जवाब प्यार से देंगे तो हमे भी जवाब प्यार से ही मिलेगा बिल्कुल सही कहा और जब तक हम इसे अपने जीवन मै नहीं ढालेंगे तब तक अमन के पैगाम लाने मै कष्ट होता ही रहेगा क्युकी जब हर कोई अपने आप को संवर लेगा तो अमन खुद बखुद आ जएगा ! मै आपकी रचना से सहमत हूँ !

बहुत सुन्दर विचार !

एस एम् मासूम said...

एक बेहतरीन लेख जो अमन के पैग़ाम के लिए लिखा गया था. आप का बहुत बहुत शुक्रिया भाई. और भी कुछ लिखा हो तो मुझे अमन का पैग़ाम से पेश करने मैं ख़ुशी होगी. साभार

DR. ANWER JAMAL said...

@ शेख़ जी ! यह लेख वाक़ई सुंदर , सटीक और लाभकारी है ।
आपका शुक्रिया ।

ZEAL said...

Wonderful post !

प्रिया सिंह said...

बहुत अच्छा लेख है
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