आदमी हमने अपने जैसा देखा तो बस एक ही जगह देखा ।
कहां देखा ?
आईने मे देखा है बस ।
लेकिन वक़्त की बात है कि हमारी शेख़ी यानि हमारी बीवी कम महबूबा तो मायके जा बैठी और चिठ्ठाजगत ने चारपाई पकड़ ली है । लिहाज़ा हम न तो अपने जौहर अपने घर मे दिखा पा रहे है और न घर के बाहर ।
अपनी वाणी को ब्लागवाणी के पास लेकर चले गए नारद जी ।
अब कौन कौन से एग्रीगेटर ज़िंदा सलामत है और हिंदी के लिए शब्द प्रहरी बने हुए हैं ?
कौन बताएगा हमे हमारी वाणी में ?
न , न , न ।
गिरी बाबू को कुछ मत कहना । पिछली पोस्ट वे आए ज़रूर लेकिन उनका आना मै तो अपने लिए मनहूस नही मानता ।
वे आकर क्या गए मेरे गधे के तो रंग ढंग ही बदल गए।
गधे की बात छोड़िए साहिबो और ये बताओ कि ब्लागिंग के खिलाड़ी आजकल कौन कौन से एग्रीगेटर के कान खींच रहे हैं ?
ऐगनस रेपलियर ने कहा है कि ‘हम जिसके साथ हंस नहीं सकते, उसके साथ प्यार भी नहीं कर सकते।‘ ठीक ही कहा है रेपलियर ने लेकिन रेपलियर ने यह नहीं बताया कि जहां प्यार न हो, वहां प्यार कैसे पैदा किया जाए ? वह आपको मैं बताऊंगा। ‘आप जिन लोगों से प्यार नहीं करते, उनके साथ हंसिए-बोलिए, प्यार पैदा हो जाएगा।‘
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यह बताया जायेगा आपको अमन के पैगाम पर जल्द ही . तब तक इंतज़ार कीजिये . और इंतज़ार का मज़ा लीजिये .
8 comments:
क्या मस्त लिखते हो पिता जी
अब्बा हुजुर परेशान मत होवो, चिट्ठाजगत बीमार है, अपनी वाणी की हत्या हो गई तो क्या हुवा, और भी बोहोत है. आपकी वाणी , सबकी वाणी, इसका प्रहरी, उसका प्रहरी इत्यादि
भाई जान चिठा जगत को कौन सी बीमारी हुई है?
..
आप आज कल मेरे ब्लॉग पे नहीं आ रहे ? दो तीन पोस्ट पे कोई टिप्पणी नहीं?
@ MAsoom ji ! गिरी बाबू अपने लिए बनारसी साड़ी लाये थे, सो बंदे को दिखाने चले आए । आजकल हमारी गुलबदन भी मायके गई हुई हैं तो हमने उनकी साड़ी तसल्ली से देख डाली और देखी ऐसे कि दाग़ ज़रा भी न आने दिया ।
फिर बातचीत भी हुई जिसे आप पिछली पोस्ट पर देख सकते हैं । बस इसी में टांग उलझाए पड़े थे हम।
न आने की वजह और भी थी और वह है पाक हुसैन के ज़िक्र का अदब । आपको हमने ताज़ियत कल ईमेल से भेजी भी थी और दस बार जाकर देखा भी कि शायद आप हमारी ताज़ियत को भी रेखा जी के पैग़ाम की तरह लगा दें लेकिन या तो आपने हमारे साथ फ़र्क़ किया है या फिर हमारी ईमेल check नहीं की
या फिर हो सकता है कि आप गिरी बाबू को बनारसी पान का गिलौरा खिला रहे हों ।
वैसे बनारसी साड़ी की पहचान में आप हमसे भी ज़्यादा हैं । गिरी बाबू की बनारसी साड़ी वाली पोस्ट पर आपने साबित कर दिखाया है ।
जौनपुर जाइयेगा तो इक ठौ हमारी गुलबदन के लिए भी लेते आइयेगा ।
चिठठाजगत के बारे में तो आप बताएं , हर ख़बर पर नज़र आपकी रहती है , हमारी नहीं ।
हुजूर आदाब बजाता हूँ,
मियाँ चिठठाजगत बिमार ही तो हुआ है मरा तो नही,
थोडा इत्मिनान रखिये
शब बा खैर
हुजूर आदाब बजाता हूँ,
मियाँ चिठठाजगत बिमार ही तो हुआ है मरा तो नही,
थोडा इत्मिनान रखिये
शब बा खैर
सुंदर प्रस्तुति चलें ठीक है...चलता रहता है, आयें या सड़ी खरीदते रहें भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध था कर्बला…हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि……एस एम् मासूम
परेशान क्यों होते हैं?
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