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Friday, December 3, 2010

‘आदमी को अपना बच्चा और पराई औरत दोनों ही अच्छे लगते हैं‘ यह एक कहावत है। क्या आपने कभी सोचा है कि आखि़र ये दोनों क्यों अच्छे लगते हैं ?

यह बताया जायेगा  आपको अमन के पैगाम पर जल्द  ही .
तब तक इंतज़ार कीजिये .
और  इंतज़ार का मज़ा लीजिये .

6 comments:

Thakur M.Islam Vinay said...

nice post

Anonymous said...

nice post

Thakur M.Islam Vinay said...

nice post

Taarkeshwar Giri said...

Shekpuiya au Thakur saheb ek hi hain lagta hain

शेखचिल्ली का बाप said...

एक बस रुकती है और कुछ बच्चे उसमे आकर चिल्लाते है ,
गोला गिरी , गोला गिरी , ले लो गोला गिरी ।
बच्चे बेचते है और लोग लेते है और खा जाते है ।
@ गिरी बाबू ! आप शेख़ को ठाकुर समझकर शेख़ और ठाकुर का ही नहीं बल्कि अपनी ख़ाली खोपड़ी का भी अपमान कर रहे हैं जिसमे गिरी नाम की चीज़ ही नही है ।
अब यह बताओ कि इसे आपने बचपन में ही बेच डाला था या प्रेमिका के सैंडल खाकर पिचक गई है या शादी के बाद बीवी खा गई है या अभी अभी सिर खुला देखकर मेरे गधे ने मुंह मार लिया है ।
ढूंढो यार ढूंढो , अपनी अक़्ल को ढूंढो । यह गई तो गई कहां आख़िर ?
हो सकता है अभी सलामत हो , बस घास चरने चली गई हो मेरे गधे के साथ ?
उफ़ , ये क्या किया मेरे गधे ने ?
अपनी इज़्ज़त भी गंवायेगा और अपना स्टैण्डर्ड भी ।
लौटने दीजिए मेरे गधे को , उसके कान तो मैं खीचूंगा , बस एक बार आप अपनी अक़्ल को मेरे गधे के साथ सोता जागता कैसी भी हालत में पकड़ लीजिए !

हाय मैं बर्बाद हो गया (सिर पीटते हुए और कपड़े नोचते हुए) । मेरे गधे की इतनी 'बड़ी इज़्ज़त' पर 'आंच' आ गई, मेरे गधे का डाउन हो गया स्टेटस ।

ढूंढो , गिरी बाबू ढूंढो । आप भी ढूंढो अपनी अक़्ल को और मैं भी ढूंढता हूं अपने गधे । आपकी मौजूदगी में तो मुझे उसकी कमी खली नहीं , बहरहाल इसके लिए तो मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं ही ।
भविष्य में भी आप तशरीफ़ लाकर मुझे शुक्रिया का मौक़ा देते रहें । आपकी शकल देखकर बड़ा सकून मिलता है ।

Manoj said...

parai orat or bachee wala post kafi majedar tha.